बच्चे, बाप की पढ़ाई ही परिवर्तन की है अर्थात् स्वयं को शरीर के बजाए आत्मा समझना।
आप बच्चों को हमेशा समझना है कि मैं आत्मा हूँ … विशेष आत्मा हूँ … साधारण नहीं हूँ …, मेरे सारे कर्म विशेष होने चाहिए।
बच्चे, ऐसा परिवर्तन तब ही सम्भव है जब आप स्मृति स्वरूप रहते हो अर्थात् आपको सदा याद रहे कि मैं Godly student हूँ … मैं देव लोक में जाने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ … मैं विश्व-परिवर्तक हूँ।
जब आप स्मृति स्वरूप स्थिति में रहते हो तब आपके पुराने संस्कार आते तो हैं परन्तु आप पर भारी नहीं होते। अर्थात् आप अपने पुराने संस्कारों को संकल्पों में ही खत्म कर देते हो, वाचा और कर्मणा तक नहीं लाते।
परन्तु, जब आप विस्मृत होते हो, तब आपके पुराने संस्कार अपना काम कर जाते हैं, जिससे कि आपका हिसाब-किताब बन जाता है। बच्चे अपना नया हिसाब-किताब बनाना बन्द करो, तब ही तो आप अपने पुराने हिसाब-किताब finish कर प्राप्तियों का अनुभव कर सकते हो। बस इसके लिए स्वयं पर attention की ज़रूरत है। जब आप बच्चों के अन्दर शिव बाप की knowledge समा जायेगी, तब आप अपना नया हिसाब-किताब नहीं बनाओंगे।
और जब आपके अन्दर बाप की याद समा जायेगी तब आप powerful बन जाओंगे, और आपके पुराने संस्कार जलकर भस्म हो जायेंगे। तब ही आप बाप-समान, गुण स्वरूप और शक्ति स्वरूप बन पाओगे।
बच्चे, बाप की पढ़ाई की एक-एक point को महीनता से समझ, उसे अपने जीवन में apply करो। ऐसे ही पढ़कर नासमझी में छोड़ मत दो। जितना आप बाप की समझानी को … बाप की याद को अपने जीवन में सदा प्रयोग करते जाओगे, उतना ही आपको सफलता मिलेगी। इससे आपका उमंग-उत्साह और खुशी बढ़ेगी। फिर तो आप हल्के हो अपनी मंज़िल पर समय से पहले पहुँच जाओगे।
परमात्मा बाप का यूँ आकर पढ़ाना – इसे आप हल्के रूप में मत लेना। जो इसकी importance को समझेगा, वहीं बाप-समान बन पायेगा अन्यथा वह अन्य आत्माओं से भी ज्यादा पश्चाताप की अग्नि में जलेगा और यही उसकी कल्प-कल्प की बाज़ी बन जायेगी।
अच्छा । ओम् शान्ति ।
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