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*Om Shanti*
*05.10.2017*
★【 *आज का पुरुषार्थ* 】★
आप सब बच्चों को प्रेम स्वरूप होकर रहना है, क्योंकि आप हो प्रेम के सागर की संतान।
आप बच्चों के मन्सा-वाचा-कर्मणा और सम्बन्ध-सम्पर्क में प्रेम झलकना चाहिए। जितना-जितना आप बच्चे प्रेम स्वरूप बनते जाओगे, तो तब आपके अन्दर हर आत्मा के प्रति चाहे वो आसुरी हो वा अपकारी हो अर्थात् हर प्रकार की आत्मा के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना बढ़ती जायेगी।
इसलिए अब आप बच्चों के अन्दर प्रेम emerge रूप में रहना चाहिए। प्रेम स्वरूप आत्मा को किसी भी आत्मा के प्रति कोई complaint नहीं होगी। उनका मन रहम और कल्याण की भावना से भरपूर होगा और आप बच्चों के शब्दों में भी मधुरता आती जायेगी।
प्रेम स्वरूप आत्मा के अन्दर मैं और मेरापन नहीं होता … प्रेम स्वरूप आत्मा वह बन सकती है जिसकी दृष्टि भाई-भाई की हो … क्योंकि प्रेम हमेशा सम्बन्ध में ही होता है। इसलिए अब आप बच्चों को स्वयं को आत्मा देखना है और अन्य को भी।
जितना आप स्वयं को आत्मा realize करते जाओगे, उतना ही आपकी दृष्टि आत्मिक होती जायेगी। और फिर अशरीरी बनना भी बहुत सहज हो जायेगा। बस अब इस पुरूषार्थ को बढ़ाओ … जैसे बाबा कहें, वैसे ही पुरूषार्थ करो। फिर बाबा भी आप बच्चों को extra मदद दे आप-समान बना लेगा।
अच्छा । ओम् शान्ति ।
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